आरोप का भी होता है असर राजनीति में

राजनीति में राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। आराेप के जवाब में भी आरोप लगाए जाते हैं। आरोप मतलब भले ही यह माना जाता है कि यह तो सिर्फ आरोप है, इसका तब तक कोई मतलब नहीं होता है जब तक आरोप साबित नहीं हो जाता है। यह सच है कि कुछ आरोप ऐसे होते हैं जब तक साबित नहीं हो जाते तब तक उनका कोई मायने नहीं रहता है लेकिन भ्रष्टाचार का आरोप ऐसा आरोप होता है जिसके लगने से भी असर होता है। भ्रष्टाचार का आरोप भले ही साबित न हो लेकिन उसका जनता पर असर तो होता है।तब तो जरूर असर होता है जब एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आरोप किसी सरकार पर लगते हैं।
चुनाव के पहले इस तरह के आरोप किसी दल की सरकार पर लगाए जाते हैं तो जनता उसे गंभीरता से लेती है कि एक दो आरोप झूठे हो सकते हैं लेकिन इतने सारे आरोप तो झूठे नहीं होते हैं। यही वजह है कि जब किसी सरकार पर यह आरोप लगते हैं तो वह कई बार चुनाव हार जाती है क्योंकि जनता मानती है कि इसे सत्ता दोबारा सौंपने का मतलब है कि राज्य में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा।भूपेश बघेल सराकर की हार के कई कारण हो सकते हैं लेकिन एक कारण तो जब भ्रष्टाचार के आरोप लगना भी है।
जब आरोप लगने शुरू हुए तो वह बंद ही नहीं हुए। एक के बाद एक घोटाले के आरोप लगते चले गए।कोल परिवहन घोटाला,आबकारी घोटाला, चावन घोटाला,डीएएमएफ घोटाला, गौठान घोटाला, गोबर घोटाला, महादेव एप घोटाला आदि का आरोप भूपेश सरकार पर भाजपा ने लगाया है।भूपेश सरकार जब तक सत्ता में रही, इससे इंकार करती रही क्योंकि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में रहता है तो वह अपने घपले व घोटाले तो छिपा सकता है लेकिन जब सत्ता चली जातीहै तो उसके लिए छिपाना संभव नही रह जाता है तब तो जो राजनीतिक दल सत्ता में आता है,वह इन घोटालाें की जांच करवा कर सचाई को सामने लाता है।तब पता चलता है कि भ्रष्टाचार कितना हुआ था कैसे हुआ था। कौन दोषी है।
भूपेश सरकार में खाद्य मंत्री ने चावल घोटाले को बहुत छिपाने का प्रयास किया। मानने से इंकार कर दिया की कोई घोटाला हुआ है, यह हवा बनाने की कोशिश की गई कि सरकार तो इस मामले में कार्रवाई कर रही है। अब जब कांग्रेस की जगह भाजपा की सरकार आ गई है तो उन तमाम भ्रष्टाचार व घोटालों की जांच तो होगी ही।सच देरसबेर सामने आएगा ही। बजट सत्र में भूपेश सरकार के चावल घोटाले का मामला उठा और उसकी जांच विधायकों की समिति को सौंपी गई है।
यानी अब विधायकों की समिति इसकी जांच करेगी।कांग्रेस भले ही न माने की इसका कोई असर होता है लेकिन सच तो यह है कि जब भी चुनाव होता है तो जनता उस दल को ही चुनना ज्यादा पसंद करती है जिस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप न लगा हो। एक दो महीने में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा को तो खूब प्रचार करने का मौका मिलेगा कि कांग्रेस ने क्या क्या भ्रष्टाचार किया है। इसका बुरा असर कांग्रेस की छबि व साख पर कुछ न कुछ तो पड़ेगा ही। स्वाभाविक है कि भाजपा ऐसे में जनता की पहली पसंद हो सकती है। साय सरकार चुनावी वादे पूरे कर जनता को संदेश दे ही रही है कि वह वादे पूरे करने वाली सरकार है,वह भ्रष्टाचार करने वाली नहीं, भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने वाली सरकार है।
इसका सकारात्मक असर जनता पर पड़ना स्वभाविक है तथा भाजपा को इसका लोकसभा चुनाव में फायदा भी मिल सकता है। लोकसभा चुनाव में जनता को पीएम मोदी नाम पर वोट देना है। पीएम मोदी की छबि एक ऐसे ईमानदार नेता की है कि जो न खाता है न किसी खाने देता है,यानी पार्टी के नेता भी भ्रष्टाचा नहीं कर सकते हैं। सभी भाजपा नेता जानते है कि उन्होंने भ्रष्टाचार किया और खबर मोदी तक गई तो कार्रवाई तो जरूर होगी। मंत्री है तो जरूर हटा दिया जाएगा।इसलिए कोई भाजपा नेता भ्रष्टाचार करने की हिम्मत नहीं कर पाता है।
नेता होना ही ऐसा चाहिए जो न खुद खाता हो न किसी को खाने देता हो। नेता तो ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए जो खुद भी भ्रष्टाचार करे और दूसरों को भी न रोके। भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार होता है चाहे वह अपने लिए किया जाए या पार्टी के लिए किया जाए। वह बुरा होता है तथा जनता ऐसे नेताओं को पसंद नहीं करती है जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे होते हैं। चाहे वह कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो।